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मध्य प्रदेश के बुन्देल खण्ड के छोटे से ग्राम बंडा में वर्ष 1966 में जन्मे, आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महा मुनिराज जी के अनन्य भक्त, उच्चतम मानवीय गुणो के धनी, सहृदय, उदारवान, धर्म निष्ठ डॉ. राजेन्द्र जी जैन वर्तमान युग के प्रसिद्ध वास्तुविद हैं। आपने सागर विश्व विद्यालय से भू-गर्भ शास्त्र (Applied Geology) से M.Tech किया एवं Madhya Pradesh Council of Science and Technology से डाउजिंग पद्धति में डॉक्टरेट की उपाधि (Ph.D) अर्जित करी है।
आपने 3 साल तक East India Minerals Ltd., Odisha में प्रथम श्रेणी अफसर के पद पर कार्य किया तत्पश्चात पन्ना I (म.प्र.) को आपने अपनी कर्म भूमि बनाया। हीरे के शहर पन्ना में एक कोहिनूर हीरा अपनी चमक फैलाने पहुँच गया| वहाँ जाकर आपने भूमिगत जल स्त्रोत की खोज का कार्य प्रारंभ किया| आप बचपन से ही बहुत संवेदनशील रहे है| आपने अपनी इस विशेषता को परख कर डाउजिंग जैसी विशेष विद्या में पारंगतता हासिल करी|
आपने डाउजिंग के द्वारा ऐसे अनेक स्थानों पर जल स्त्रोतों की खोज की, जहाँ अन्य भूजल शास्त्री एक बूँद जल स्त्रोत का भी पता नहीं लगा पाए थे| आपकी ख्याति की चर्चा पन्ना के लोक स्वास्थ्य विभाग (Public Health Department) तक पहुँची और उन्होंने अनेक जल स्त्रोत की खोज का कार्य आपको सौंपा था।
इसी दौरान गर्मी की तीव्रता के कारण पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में जल पूरी तरह से सूख गया था, सभी जानवर प्यास से तड़प रहे थे| ऐसी विकट परिस्थिति में आपको वहाँ जल स्त्रोत की खोज की जिम्मेदारी दी गयी| जब आप उद्यान में गए तब वहाँ पर जानवरों की व्याकुल स्थिति देखकर आपका कोमल ह्रदय द्रवित हो गया |
आपने अपने ज्ञान एवं डाउसिंग के माध्यम से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में जल स्त्रोत ही नहीं खोजा अपितु छोटे-छोटे रोक बाँध (Check Dam) बनवाएँ एवं अन्य कई पद्धतियों से जल स्रोतों का संरक्षण एवं संवर्धन किया, जिससे जल की कमी को दूर करना संभव हुआ| आपके इस प्रयास से सकारात्मक परिणाम देखने के बाद पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के सभी वरिष्ठ अधिकारी आप के प्रशंसक हो गए एवं आपके इस अतुलनीय कार्य के लिए शासन से सम्मानजनक धनराशि दिलवाना प्रस्तावित किया| परंतु आपने मूक- पशुओं की रक्षा करना अपनी नैतिक जिम्मेदारी बताकर उस बड़ी धनराशि को स्वीकारने से स्पष्ट मना कर दिया| जब तक आप पन्ना में रहे तब तक पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को अपनी निशुल्क सेवाएं देते रहे| वर्ष 2000 में आप पन्ना से विदिशा (म.प्र.) आए| परन्तु जिस तरह से चन्दन की खुशबू छुपाए नहीं छुपती है, इसी भाँती आपके सद्कार्यों एवं उपलब्धियों की खबर विदिशा में सुगंध की तरह फ़ैल गयी| विदिशा के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (Public Health Engineering Department) के द्वारा 20,000 से अधिक जल स्त्रोतों की खोज आपके द्वारा करवाई गई, जिसमें से 95% सफल जल स्त्रोत आपके द्वारा खोजे गए| इसके अलावा आपने निजी रूप से भी अनेकों जल स्रोतों की सफल खोज की जिससे किसान आपको धरती पर भगवान की तरह पूजने लगे| इसी के साथआप Samrat Ashok Technological Institute, Vidisha में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहे है। सरकारी शोधकार्यों में आपने डाउजिंग का इस्तेमाल कर धरती के रहस्यों का पता लगाने में अपना योगदान दिया है । आपने भू-गर्भ शास्त्र के ज्ञान से धरती में समाहित खनिजों पर शोधकार्य किया है| आप डाउजिंग पद्धति के माध्यम से भूमि की आतंरिक स्थिति के आधार पर भूमिगत ऊर्जा का पता लगाते है| आपने नकारात्मकता की तीव्रता के आधार पर भूमिगत शल्य(Skeleton) भी खोजे हैं| आपने अनेक स्थानों पर शोध कर के यह पता लगाया की वास्तु में भवन विन्यास (orientation) से अधिक महत्व भूमिगत ऊर्जा का है| आपने इस शोध से वास्तु को पूर्णतः एक नयी दिशा प्रदान करी है| अपने वर्ष 2006 के जुलाई माह में अपने शुभ कदम इंदौर में रखे| इंदौर आने के 6 माह के अंदर ही आपने 7 जनवरी 2007 को अनवरत 12 घण्टे का टी.वी.पर सीधे प्रसारण के माध्यमसे 'वास्तु का वैज्ञानिक दृष्टिकोण' विषय पर व्याख्यान देकर कीर्तिमान रच दिया| प्रसिद्ध वास्तुविद और भूवि ज्ञानी होने के साथ- साथ, आप स्वर- विज्ञान के भी ज्ञाता है| आप स्वर- विज्ञान के द्वारा जीवन में सुख, शांति, समृद्धि एवं सकारात्मकता की वृद्धि का मार्ग बताते हैं| आप स्वर- विज्ञान का उपयोग आमजन की परेशानियाँ एवं अनेक प्रकार के रोगों के उपचार हेतु जन कल्याण में करते है| आपने बिड़ला, रिलायंस, पारसनाथ, भास्कर, डी.एल.एफ. आदि प्रतिष्ठित कंपनियों की भूमि की ऊर्जा जांच कर उनके व्यवसाय की स्थापना एवं संचालन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है|